मज़बूर था मे अपने सच्चे इश्क़ के खातिर नहीं तो बेवफाई निभा लेता तुम्हारी तरह ही उन याद…
सब डूबे चले जा रहे हैं स्वार्थ के नदी में जैसे सही गलत से यहाँ किसीका कोई नाता नही द…
चालबाज़ों की यहाँ होती है तारीफ और बेरहमी से रौंदा जाता है मासूम दिलों को दिखावे की दीव…
बेहतर इंसान होते हैं यह मासूम दिल वाले पर होती है बदतर इनकी नसीब वक़्त उनसे करती रहती…
मुट्ठी भर रोशनी अभी भी बची है उम्मीदों मे हार से हाथ मिलाने का नही है कोई इरादा झोंक…
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