पलटता रहा अतीत के पन्ने एक के बाद एक पर ग़म के सिवा उनमे था नही कुछ बस इस उम्मीद में …
ना जीत की खुशी ना किरदार पे दाग कुछ नहीं टिकता हमेशा के लिए तो उलझ के बेफिजूल के सोच…
दगा देके अपनी सारी परेशानियों को अपने आप को थोड़ा सुकून की नींद के हवाले करो दो वजह …
लाख खामियों से सजी हो भले खुद की ज़िन्दगी पर उठाना नहीं छोड़ते दूसरों के तरफ उंगली प…
भले कितने रहे भेद एक दूसरे के सोच में सच्ची दोस्ती के बीच में कोई टांग अड़ा पाता नही…
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